गायत्री मंत्र में क्या खास शक्ति है
पहले हम समझते है कोई मंत्र काम केसे करता है, वास्तव में मंत्र के सही और सटीक उच्चारण से वह कार्य करता है, जब हम कोई मंत्र बोलते है वह ध्वनि हमारे शरीर के अलग अलग भाग से उत्पन्न होती है व अलग अलग भाग को प्रभावित करती है। उदाहरण के तौर पर जब आप प्रणव यानी कि ॐ का उच्चारण करते है तो वह भी अलग अलग भाग से उत्पन्न हुआ प्रतीत होगा, तो वैसे ही इस चित्र के अनुसार गायत्री मंत्र भी शरीर के अलग अलग बिंदुओ को प्रभावित करता है।
राम और रावण में यही अंतर था, रावण बहुत शक्तिशाली होने साथ ही अहंकारी भी था क्युकी वह गायत्री मंत्र का जप नहीं करता था तो वह अपने अहंकार पर विजय नहीं पा सका, जबकि श्री राम गायत्री मंत्र के जप के प्रभाव को जानकर उसका जाप करते थे और सरल स्वभाव के स्वामी थे।
गायत्री मंत्र क्या है, यह जानना जरूरी है, यह वास्तव में सविता देवता का मंत्र है, मतलब इसकी ऊर्जा का संबंध सविता देवता से है, सविता देवता को ही सूर्य समझिए, सूर्य की शक्ति को सविता कहा गया है। तो जो कहते है की गायत्री मंत्र से कोई असर नहीं हुआ या ना कुछ खास महसूस हुआ तो उन्हें ये जान ना जरूरी है कि इसका जप कब और केसे करे।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री मंत्र का जप दिन में होने वाली तीनों में से किसी भी संध्या के समय किया का सकता है, मतलब सवेरे, दोपहर या शाम को, वैसे तो आप दिन में कभी भी जप कर सकते है पर तब सूर्य का प्रकाश होना चाहिए और वह प्रकाश आपके शरीर को स्पर्श भी कर रहा हो, पर आपको रोज एक ही समय एक निश्चित मात्रा में जप करना चाहिए, इस लिए संध्या काल उचित होगा क्युकी तब तो आपको सूर्य का प्रकाश देख कर भी जप शुरू करने का स्मरण हो जाएगा। और एक बात गायत्री मंत्र के प्रभाव से मनुष्य, काम, क्रोध, मद, दंभ, दुर्भाव, लोभ, द्वेष, अहंकार से दूर हो सकता है। और इनसे दूर होने पर ही आध्यात्मिक उन्नति संभव है, तो जो अपनी आध्यात्मिक उन्नति चाहते है वे इसका जप अवश्य करे।
आपको यह भी पता होगा कि गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र को हिन्दू धर्म में बहुत प्रभाव शाली माना गया है, ऐसा इसीलिए है क्युकी यह दोनों मंत्र आपकी आध्यात्मिक उन्नति में बहुत बड़े सहायक सिद्ध होते है।
मान्यता है कि चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां की जन्मदात्री देवी गायत्री हैं। वेदों की जन्मदात्री होने के कारण इनको वेदमाता भी कहा जाता है। त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराध्य देवी भी इनको माना जाता है, इसलिए देवी गायत्री वेदमाता होने के साथ देवमाता भी हैं। गायत्री माता ब्रह्माजी की दूसरी पत्नी हैं, इनको पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी का अवतार भी कहा जाता है।